जैन विवाह परंपराएँ

जैन विवाह परंपराएँ: अहिंसा, साधुता और संस्कृति का संगम

भारत की विभिन्न सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं में जैन धर्म का एक विशेष स्थान है। जैन समुदाय की परंपराएँ और रीति-रिवाज उनके धर्म के मूल सिद्धांतों पर आधारित होते हैं, जो अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, अचौर्य, और ब्रह्मचर्य पर केंद्रित हैं। जैन विवाह परंपराएँ भी इन्हीं सिद्धांतों के प्रति समर्पित होती हैं, और इन्हें बड़ी ही सादगी, पवित्रता और अनुशासन के साथ निभाया जाता है।

इस लेख में हम जैन विवाह परंपराओं के विभिन्न पहलुओं पर विस्तृत चर्चा करेंगे।

विवाह पूर्व की परंपराएँ

विवाह प्रस्ताव और खोज

जैन समाज में विवाह प्रस्ताव का प्रारंभिक चरण अत्यंत महत्वपूर्ण होता है।

परंपरागत रूप से, विवाह प्रस्ताव परिवार के बुजुर्गों और रिश्तेदारों द्वारा तय किए जाते हैं।

वर्तमान समय में, मैट्रिमोनियल वेबसाइट्स और सामाजिक नेटवर्किंग साइट्स भी वर-वधू की खोज में सहायक हो रही हैं।

कुंडली मिलान

जैन विवाह में कुंडली मिलान एक प्रमुख प्रक्रिया है। वर और वधू की कुंडलियों का मिलान करके यह सुनिश्चित किया जाता है कि उनके ग्रह-नक्षत्र अनुकूल हैं और उनका वैवाहिक जीवन सुखमय रहेगा। इसमें 36 गुणों का मिलान किया जाता है और कम से कम 18 गुण मिलना अनिवार्य होता है।

लग्न पत्रिका

लग्न पत्रिका विवाह की तारीख और समय निश्चित करने के लिए बनाई जाती है।

यह पत्रिका जैन पंडित या ज्योतिषी द्वारा तैयार की जाती है।

इसमें शुभ मुहूर्त, तिथि और समय का उल्लेख होता है, ताकि विवाह समारोह विधिवत और शुभ फल देने वाला हो।

जैन विवाह समारोह

वरघोड़ा

विवाह समारोह की शुरुआत वरघोड़ा से होती है, जिसमें वर घोड़े या हाथी पर सवार होकर बारात के साथ वधू के घर जाता है।

बारातियों का स्वागत वधू के परिवार द्वारा किया जाता है और इस दौरान मंगल गीत गाए जाते हैं।

मंदप प्रवेश और पूजा

विवाह समारोह का मुख्य आयोजन मंडप में होता है, जिसे विशेष रूप से सजाया जाता है।

वर और वधू मंडप में प्रवेश करते हैं और उनकी पूजा की जाती है।

इस पूजा में भगवान महावीर और अन्य तीर्थंकरों की स्तुति की जाती है।

वरमाला

मंडप प्रवेश के बाद वरमाला की रस्म होती है। इसमें वर और वधू एक दूसरे को माला पहनाते हैं।

यह रस्म उनके एक दूसरे के प्रति प्रेम और सम्मान का प्रतीक होती है और विवाह की आधिकारिक शुरुआत का संकेत देती है।

कन्यादान

कन्यादान जैन विवाह का एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है।

इसमें वधू के माता-पिता अपनी पुत्री का हाथ वर के हाथ में सौंपते हैं और उसे अपनी बेटी का संरक्षण और देखभाल सौंपते हैं।

यह रस्म माता-पिता के बलिदान और प्रेम का प्रतीक है।

फेरे

जैन विवाह में सात फेरे नहीं होते, बल्कि चार फेरे होते हैं।

ये फेरे अग्नि के चारों ओर होते हैं और प्रत्येक फेरा चार प्रमुख व्रतों का प्रतीक होता है – अहिंसा, सत्य, अचौर्य और ब्रह्मचर्य। वर और वधू इन व्रतों का पालन करने का संकल्प लेते हैं।

आशीर्वाद

फेरों के बाद वर और वधू अपने बड़ों से आशीर्वाद लेते हैं।

यह आशीर्वाद उनके सुखी और सफल वैवाहिक जीवन के लिए होता है। बड़ों का आशीर्वाद अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है और यह नवविवाहित जोड़े को एक नई ऊर्जा और संबल प्रदान करता है।

विवाह के बाद की परंपराएँ

गृह प्रवेश

विवाह के बाद वधू अपने ससुराल में प्रवेश करती है, जिसे “गृह प्रवेश” कहा जाता है।

इस अवसर पर वधू अपने दाहिने पैर से घर के अंदर प्रवेश करती है, जो शुभ माना जाता है। इस दौरान उसकी आरती उतारी जाती है और उसके स्वागत में कई रस्में निभाई जाती हैं।

विदाई

विदाई का अवसर वधू और उसके परिवार के लिए भावुक होता है। वधू अपने मायके को छोड़कर ससुराल जाती है।

इस अवसर पर वधू को आशीर्वाद और उपहार दिए जाते हैं। विदाई के समय माता-पिता और रिश्तेदारों की आंखों में आंसू होते हैं, लेकिन साथ ही वे वधू के नए जीवन के लिए शुभकामनाएँ भी देते हैं।

जैन विवाह परंपराओं में आधुनिकता और परिवर्तन

वर्तमान समय में जैन विवाह परंपराओं में भी कुछ परिवर्तन और आधुनिकता का समावेश देखा जा सकता है।

अब विवाह समारोह अधिक संक्षिप्त और सरल होते जा रहे हैं। वर-वधू की पसंद और सहमति को भी अधिक महत्व दिया जा रहा है।

इसके अलावा, विवाह के आयोजन में आधुनिक तकनीकों और सुविधाओं का उपयोग भी बढ़ा है।

निष्कर्ष

जैन विवाह परंपराएँ भारतीय संस्कृति और परंपरा का जीवंत उदाहरण हैं। ये परंपराएँ न केवल धार्मिक और सामाजिक महत्व रखती हैं, बल्कि एक मजबूत परिवारिक बंधन को भी स्थापित करती हैं। यद्यपि आधुनिकता और समय के साथ इनमें कुछ परिवर्तन आए हैं, फिर भी इनकी मूल भावना और महत्व आज भी बरकरार है। जैन विवाह परंपराएँ अपने अनुशासन, श्रद्धा और समर्पण के साथ आज भी समाज में एक महत्वपूर्ण स्थान बनाए हुए हैं। इन परंपराओं के माध्यम से जैन समाज अपने धर्म के मूल सिद्धांतों और सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित और सम्मानित करता है।


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