सिख धर्म एक युवा और जीवंत धर्म है जो अपने विशिष्ट रीति-रिवाजों और परंपराओं के लिए जाना जाता है। सिख विवाह को ‘आनंद कारज’ कहा जाता है, जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘आनंद का कार्य’। यह नाम ही इस बात का प्रतीक है कि सिख विवाह एक खुशी और आनंद का अवसर होता है। सिख विवाह परंपराएँ धार्मिकता, अनुशासन, प्रेम और पारिवारिक बंधनों का संगम होती हैं। इस लेख में हम सिख विवाह परंपराओं के विभिन्न पहलुओं पर विस्तृत चर्चा करेंगे।
विवाह पूर्व की परंपराएँ
विवाह प्रस्ताव और खोज
सिख समाज में विवाह प्रस्ताव का प्रारंभिक चरण महत्वपूर्ण होता है। परंपरागत रूप से, विवाह प्रस्ताव परिवार के बुजुर्गों और रिश्तेदारों द्वारा तय किए जाते हैं।
वर्तमान समय में, मैट्रिमोनियल वेबसाइट्स और सामाजिक नेटवर्किंग साइट्स भी वर-वधू की खोज में सहायक हो रही हैं।
सगाई (रोक)
सगाई को सिख समाज में ‘रोक’ कहा जाता है। यह विवाह के लिए प्रारंभिक सहमति और प्रतिबद्धता का प्रतीक होता है। इस अवसर पर दोनों परिवार एक दूसरे को उपहार और मिठाइयाँ देते हैं। वधू को पारंपरिक रूप से कड़े (कंगन) और अन्य गहने पहनाए जाते हैं।
चूड़ा और कलीरें की रस्म
विवाह से कुछ दिन पहले वधू के मायके में चूड़ा और कलीरें की रस्म होती है।
चूड़ा लाल और सफेद रंग की चूड़ियों का सेट होता है जो वधू की मामा द्वारा पहनाया जाता है।
कलीरें सोने या चांदी की धातु से बनी होती हैं और इन्हें चूड़ों पर बांधा जाता है।
यह रस्म वधू के नए जीवन की शुरुआत का प्रतीक होती है।
सिख विवाह समारोह
गुरुद्वारा में विवाह
सिख विवाह का मुख्य आयोजन गुरुद्वारा में होता है।
गुरुद्वारा में उपस्थित सभी लोग एकत्र होकर ‘आनंद कारज’ समारोह का हिस्सा बनते हैं।
गुरुद्वारा का पवित्र वातावरण और गुरबाणी की गूंज इस अवसर को और भी पवित्र बना देती है।
अरदास और लावां फेरों की रस्म
विवाह समारोह की शुरुआत अरदास से होती है, जो एक प्रार्थना होती है।
इसके बाद लावां फेरों की रस्म होती है। जिसमें वर और वधू गुरु ग्रंथ साहिब के चारों ओर चार फेरे लेते हैं। प्रत्येक फेरे के बाद एक लावां (श्लोक) गाया जाता है, जो गुरु रामदास द्वारा रचित है।
ये लावां विवाह के चार प्रमुख सिद्धांतों का प्रतीक हैं: धर्म, मोक्श, सच्चाई, और प्रेम।
मंजी साहिब
लावां फेरों के बाद वर और वधू को मंजी साहिब पर बिठाया जाता है। यह गुरुद्वारा की प्रमुख मंजी होती है, जो गुरु ग्रंथ साहिब के सामने स्थित होती है। यहां पर नवविवाहित जोड़े को आशीर्वाद दिया जाता है और उनके सुखी वैवाहिक जीवन की कामना की जाती है।
कड़ा प्रसाद
विवाह समारोह के अंत में कड़ा प्रसाद का वितरण होता है।
यह प्रसाद गेहूं के आटे, घी और शक्कर से बनाया जाता है और इसे सभी उपस्थित लोगों में बांटा जाता है।
कड़ा प्रसाद सिख धर्म में पवित्रता और शुभता का प्रतीक माना जाता है।
विवाह के बाद की परंपराएँ
विदाई (दोल्ली)
विवाह के बाद वधू की विदाई की रस्म होती है, जिसे ‘दोल्ली’ कहा जाता है।
यह रस्म वधू के परिवार के लिए भावुक और महत्वपूर्ण होती है। अपने माता-पिता और परिवार को छोड़कर वधू अपने ससुराल जाती है।
विदाई के समय वधू को आशीर्वाद और उपहार दिए जाते हैं।
गृह प्रवेश
ससुराल पहुंचने पर वधू का गृह प्रवेश होता है।
वधू अपने दाहिने पैर से घर में प्रवेश करती है, जो शुभ माना जाता है। इस अवसर पर, ससुराल के सदस्य वधू का स्वागत करते हैं और वधू की आरती उतारते हैं। गृह प्रवेश के दौरान वधू को घर की लक्ष्मी माना जाता है और उसके स्वागत में मंगल गीत गाए जाते हैं।
पग फेरा
विवाह के बाद वधू अपने मायके लौटती है जिसे ‘पग फेरा’ कहा जाता है। यह रस्म वधू के ससुराल में आने के बाद कुछ दिनों में संपन्न होती है।
वधू का अपने मायके में उसका स्वागत बड़े ही धूमधाम से किया जाता है और उसे उपहार दिए जाते हैं।
सिख विवाह परंपराओं में आधुनिकता और परिवर्तन
वर्तमान समय में सिख विवाह परंपराओं में भी कुछ परिवर्तन और आधुनिकता का समावेश देखा जा सकता है।
अब सिख समाज में विवाह समारोह अधिक संक्षिप्त और सरल होते जा रहे हैं। अब वर-वधू की पसंद और सहमति को भी अधिक महत्व दिया जा रहा है।
इसके अलावा, विवाह के आयोजन में आधुनिक तकनीकों और सुविधाओं का उपयोग भी बढ़ा है।
निष्कर्ष
सिख विवाह परंपराएँ भारतीय संस्कृति और परंपरा का जीवंत उदाहरण हैं। ये परंपराएँ न केवल धार्मिक और सामाजिक महत्व रखती हैं, बल्कि एक मजबूत परिवारिक बंधन को भी स्थापित करती हैं। हालाँकि, आधुनिकता और समय के साथ इनमें कुछ परिवर्तन आए हैं, फिर भी इनकी मूल भावना और महत्व आज भी बरकरार है। आज भी सिख विवाह परंपराएँ अपने अनुशासन, श्रद्धा और समर्पण के साथ समाज में एक महत्वपूर्ण स्थान बनाए हुए हैं। इन परंपराओं के माध्यम से सिख समाज अपने धर्म के मूल सिद्धांतों और सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित और सम्मानित करता है।
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