विवाह एक सुन्दर संबंधों को दर्शात हुए, विभिन्न संस्कृतियों और धर्मों के लिये भिन्न-भिन्न व्यक्तिगत कानून बनाये गये हैं, भारत में पहली शादी की वैधता रहते हुए, आपकी दूसरी शादी(Second Marriage) अवैध मानी जायेगी, इस तरह के कृत्य कानूनी रूप से निषेध है। परंतु फिर भी भारतीय समाज में दूसरे विवाह(Second Marriage in India) का प्रचलन बना हुआ है। भारत में पूर्वाग्रह एवं कानून और सामाजिक प्रयासों के बीच यह असमानता भारत में दूसरी पत्नियों को बहुत ही कम कानूनी सुरक्षा प्रदान करती है।
भारत में दूसरा विवाह वैध है या नहीं?(Is Second Marriage Legal in India or not?)
भारतीय विवाह अधिनियम 1955 के अनुसार दूसरी शादी के विषय में निम्न जानकारी की आवश्यकता होती है।
पहला यह कि जिस व्यक्ति द्वारा दूसरा विवाह किया जा रहा है। वह तलाकशुदा होना चाहिए। अथवा उसके जीवनसाथी पति या पत्नी की मृत्यु हो चुकी हो।
ऐसी स्थिति में, दूसरे विवाह से सम्बंधित कानून विधि द्वारा प्रदान किया गया है।
अन्य धर्म में दूसरे विवाह के नियम
मुस्लिम धर्म में दूसरा विवाह(Second Marriage in Muslim Religion)
- यदि किसी मुस्लिम व्यक्ति की पत्नी की मृत्यु हो जाती है या वह तलाकशुदा हो।
तो वह कानून के अनुसार दूसरा विवाह कर सकता है और दूसरी शादी वैध मानी जाएगी।
- शरिया कानून के अनुसार, कोई व्यक्ति पहली पत्नी को तलाक दिए बिना मुस्लिम धर्मानुसार दूसरा विवाह कर सकता है, लेकिन इसके लिए उसे पहली पत्नी की सहमति लेनी होगी।
- मुस्लिम महिलाओं में यदि पति की मृत्यु हो जाती है, तो उसे अपनी मृत्यु की तारीख से 4 महीने या चंद्र मास और दस दिन की इद्दत अवधि का पालन करना अनिवार्य होता है।
- मुस्लिम कानून के तहत पत्नी तुरंत दूसरा विवाह नहीं कर सकती।
इस अवधि के दौरान उसे किसी के साथ यौन संबंध बनाना प्रतिबंधित होता है।
ईसाई धर्म में दूसरा विवाह(Second Marriage in Christianity)
- 1869 के तलाक अधिनियम की धारा 57-59 पुनर्विवाह (second marriage )कानूनों से संबंधित है।
- ईसाई धर्म में अपनी पूरी ताकत लगाकर अपने रिश्ते को बचाए जाने की कोशिश की जाती है।
हालाँकि, यह बच्चों और क्षतिग्रस्त जीवनसाथी की भावनात्मक, शारीरिक और मानसिक सेहत की कीमत पर नहीं होगा।
अगर रिश्ता बचाया नहीं जा सकता तो तलाक और पुनर्विवाह दोनों ही जायज़(मान्य )हैं।
- जीवनसाथी की मृत्यु के बाद दूसरा विवाह की हमेशा अनुमति होती है।
पारसी धर्म में दूसरे विवाह के नियम(Second Marriage Rules in Parsi religion)
- पारसी विवाह अधिनियम 1936 में बताया गया है की प्रत्येक पारसी जो अपनी पत्नी या पति के लाइफ (जीवनकाल)में, चाहे वह पारसी हो या न हो, ऐसी पत्नी या पति से नियमपूर्वक तलाक लिए बिना, या अपने पिछले विवाह को अमान्य या टूटा हुआ घोषित किए बिना, दूसरा विवाह करता है।वह अपने पति या पत्नी के जीवनकाल में पुनः विवाह करने के अपराध के लिए भारतीय दंड संहिता द्वारा निर्धारित दंड का भागीदार होगा।
महिलाओं एवं पुरुषों के लिए दूसरे विवाह की आयु
पहले विवाह की औसत आयु दोनों व्यक्तियों के लिए 2.2 वर्ष है। पुरुषों के लिए 1.6 वर्ष तथा महिलाओं के लिए 3.0 वर्ष होना चाहिए। दूसरे विवाह के लिए पैटर्न दूसरा है: जहां तलाकशुदा महिलाएं औसतन 1.7 वर्ष बड़े पुरुषों से पुनर्विवाह करती हैं, जबकि तलाकशुदा पुरुष 5.3 वर्ष छोटी महिला से पुनर्विवाह (second marriage)करते हैं।
नोट –
वैसे तो हम जानते हैं कि भारत में लड़कों की विवाह की आयु 21 वर्ष एवं लड़कियों की विवाह की आयु 18 वर्ष निर्धारित है ।
दूसरे विवाह से लाभ(Benefits from Second Marriage)
1- आपसी सामंजस में वृद्धि:
अपने-अपने प्रथम विवाह के अनुभव के माध्यम से हम अपने दूसरे विवाह में आपसी सामंजस्य एवं एक दूसरे की भावनाओं को खुलकर समझ और उस पर बात कर सकते है।
जिससे विवाह को दृढ़ता प्रदान की जा सकती है।
2- प्यार की कदर को समझना:
पहला रिश्ता टूटने के बाद हम अपने इस नए रिश्ते में प्यार और एक – दूसरे के साथ की कदर करेंगे, और अपने इस कीमती रिश्ते को दिल से संजोकर कर रखेंगे।
3- अनुभव और साझेदारी में वृद्धि:
पहली शादी की अपेक्षा दूसरी शादी में लोग ज्यादा समझदार और अनुभवी हो जाते हैं।
जिससे उनके पीछे आपसी संवाद खुलकर हो सकता है और अपने पारिवारिक जीवन को सुखमय बना सकते है।
दूसरे विवाह से होने वाले नुकसान(Disadvantages of Second Marriage)
प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में दूसरी पत्नी होने की अनेक प्रकार की चुनौतियां हो सकती हैं, सामाजिक, आर्थिक एवं पारिवारिक कष्टों से गुजरना पड़ सकता है।
1- वित्तीय दायित्व में वृद्धि:
दूसरी पत्नी के रूप में वित्तीय दायित्व बहुआयामी हो सकते हैं।
आपके साथी पर अपनी पहली शादी से वित्तीय ज़िम्मेदारियाँ हो सकती हैं, जैसे कि गुजारा भत्ता(दैनिक खर्च)या बच्चे की देखभाल के लिए भुगतान करना पड़ता हो।
ये दायित्व आपके घरेलू बजट और वित्तीय नियोजन को नकारात्मक तरीके से प्रभावित कर सकते हैं।
2- पहली शादी के बोझ का प्रभाव:
अगर दूसरी शादी करने वाले व्यक्ति के बच्चे नहीं हैं, तो संभावना है कि उन्हें अपने पूर्व साथी से कभी बात नहीं करनी पड़ेगी।
लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वे थोड़े आहत नहीं हैं।
रिश्ते बहुत मुश्किल होते हैं और अगर चीजें गलत हो जाती हैं, तो हमें दुख तो होता है। यही जीवन है। हम यह भी सीख सकते हैं कि अगर हम दोबारा से दुख नहीं पाना चाहते। तो हमें दीवार खड़ी कर लेनी चाहिए या ऐसे ही दूसरे समायोजन करने चाहिए।
इस तरह के बोझ आपकी पहली शादी के लिए हानिकारक हो सकते हैं।
3- सौतेला माता-पिता होने की कठिनाइयां:
जीवन में माता-पिता बनना काफी कठिन है; हकीकत में, सौतेला माता-पिता बनना तो इससे भी ज्यादा कठिन होता है।
कुछ बच्चे अपने माता-पिता के अलावा दूसरे माता-पिता को स्वीकार नहीं कर पाते।
जिससे उनको समझना उनसे बात करना एवं वैवाहिक नियमों के पालन करने में कठिनाई उत्पन्न होती है।
निष्कर्ष(Conclusion)
जैसा की हम जानते है कि – हर सिक्के के दो पहलू होते है: एक नकारात्मक एवं दूसरा सकारात्मक।
इसी प्रकार दूसरी शादी लोगों को दर्द से ऊपर उठने में मदद प्रदान करती है और उन्हें अपनी पिछली गलतियों को न दोहराने का अवसर देती है। आमतौर पर भारत में दूसरी शादी के संबंध में कानूनी प्रावधानों एवं महिलाओं से जुड़ी सामाजिक कलंकों एवं उनकी सुरक्षा हेतु व्यापक कानूनी ढांचे की आवश्यकता है। एक स्पष्ट कानून दूसरे विवाह के मार्ग में आने वाले कठिनाइयों को कम करेगा एवं उन्हे आवश्यकता अनुसार पर्याप्त कानूनी सुरक्षा प्रदान की जा सकेगी।
जिससे समाज में उनकी स्थिति और बेहतर हो सकती है।
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