Polygamy in India

Polygamy: भारत में बहुविवाह के लिए विभिन्न धर्मों के नियम 

बहुविवाह(Polygamy) की प्रथा के अतंर्गत किसी व्यक्ति के एक से अधिक पति या पत्नी होते है। यह विवाह एकल विवाह के विपरीत होता है। बहुविवाह को दो रुपों में देखा जा सकता है। जिसके पहले प्रकार में एक पुरुष एक से अधिक महिलाओं से विवाह करता है। और दूसरे प्रकार में महिला एक से अधिक पुरुषों से विवाह करती है, जिसे बहुपतित्व कहा जाता है। बहुविवाह(Polygamy) हर धर्म के अन्तर्गत अवैध माना जाता है। परन्तु  इस्लाम धर्म में नहीं। बहुविवाह प्राचीन काल से प्रचलन में रहा है।
परंतु यह कोई अनिवार्य  प्रथा नहीं थी बहु विवाह का उदाहरण हम रामायण, महाभारत में देख सकते हैं।

भारत में बहुविवाह का वर्तमान स्वरूप(Current form of polygamy in India)

बहुविवाह का लिखित उल्लेख विभिन्न धर्मों के लगभग सभी धार्मिक ग्रंथों में पाया गया है।

हिंदू धर्म में रामायण , महाभारत और भगवद गीता में बहुविवाह का उल्लेख मिलता है। 

कुरान में भी बहुविवाह की वैधता(Polygamy Legal in Islam) का उल्लेख है। जिसके तहत, एक मुस्लिम व्यक्ति ज्यादा से ज्यादा चार पत्नियाँ रख सकता है। 

ईसाई धर्म में, बहुविवाह अब अवैध(Polygamy Illegal in Christianity)  घोषित हो गया है। 

हाल के वर्षों में, इस्लाम के तहत बहुविवाह की वैधता बहस(विवाद)का विषय बन गई है। और इसने हिंसा को भी बढ़ावा दिया है।

इसलिए, बहुविवाह के अनेक पहलुओं पर गहराई से विचार करने की आवश्यकता है।

भारत में विभिन्न धर्मो के अंतर्गत बहुविवाह कानून 

हिंदु धर्म में बहुविवाह कानून(Polygamy law in Hindu religion)

प्राचीन काल में राजा अपनी शक्ति प्रदर्शन एवं साम्राज्य विस्तार हेतु एक से अधिक वैवाहिक संबंध स्थापित करते थे,जो बहुविवाह के अंतर्गत आता था। परंतु उन पर बहु विवाह की कोई बाध्यता नहीं थी।

वर्तमान समय में हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के अनुसार, बहुविवाह को पूरी तरह से समाप्त(Polygamy Illegal in Hinduism) कर दिया गया है। उसके उपरांत हिंदुओं में केवल एक विवाह मान्य है। और यहाँ तक कि द्विविवाह, जो कि बहुविवाह का ही एक रूप है, को भी इस समय समाप्त कर दिया गया है।

हिंदू विवाह अधिनियम 1955 (Hindu Marriage Act 1955) 

  • धारा11:
    इस अधिनियम में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि द्विविवाह अवैध हैं, अर्थात भारतीय कानून के अनुसार उनका कोई महत्व नहीं है। 
  • धारा 17:
    यह अधिनियम लागू होने के बाद भी यदि कोई व्यक्ति बहुविवाह करता है। तो वह दंडनीय अपराध माना जाएगा।

उपरोक्त कानून सिख ,जैन, बौद्ध  पर भी लागू होगा।

पारसी धर्म में बहुविवाह कानून(Polygamy law in Parsi religion)

पारसी विवाह और तलाक अधिनियम, 1936(Parsi Marriage and Divorce Act, 1936) में पहले से ही द्विविवाह को अवैध घोषित कर दिया था। इस अधिनियम के अनुसार, कोई भी पारसी व्यक्ति तब तक दूसरा विवाह नहीं कर सकता, जब तक उसने अपने पहले पति या पत्नी से विधिपूर्वक तलाक ना ले लिया हो। पत्नी या पति द्वारा कानूनी रूप से तलाक दिये बिना या उसकी पिछली शादी को अवैध या भंग घोषित किये बिना भारतीय दंड संहिता द्वारा प्रदान किये गए दंड का भागीदार होगा।

इस्लाम धर्म में बहुविवाह कानून(Polygamy law in Islam religion)

मुस्लिम पर्सनल लॉ एप्लीकेशन एक्ट, 1937(Muslim Personal Law Application Act 1937) के अनुसार  बहूविवाह मान्य है।
यह किसी भी रूप से बहु विवाह को प्रतिबंधित नहीं करता है।
परंतु उनकी पत्नियों की संख्या 4 से अधिक नहीं होनी चाहिए। इस्लाम धर्म के अनुसार द्विविवाह,बहुविवाह वर्तमान समय में भी प्रचलित है।
इस पर केवल संवैधानिक प्रावधानों के उल्लंघन पर ही प्रतिबंध लगाया जा सकता है, अन्यथा किसी भी स्थिति में नहीं।

भारतीय समाज पर बहुविवाह का प्रभाव(Impact of polygamy on Indian society)

बहुविवाह के द्वारा एक हस्ते – खेलते परिवार में अशांति का माहौल छा जाता है।
घर का वातावरण क्लेशपूर्ण हो जाता है,तथा पहली पत्नियों के अधिकारों का भी हनन होता है।
बहुविवाह महिलाओं के साथ भेद- भाव करता है। क्योंकि एक व्यक्ति बहु विवाह के उपरांत अपने सभी पत्नियों का समान खर्च,समय एवं समान संतुष्टि प्रदान नहीं कर सकता है।
जिससे उनके बीच विवाद उत्पन्न हो जाता है और उनकी नैतिकता का भी हनन होता है।

समाज में महिलाओं से लेकर बच्चों सहित सभी पर बहुविवाह का नकारात्मक प्रभाव(Negative Effect of Polygamy) पड़ सकता है।

इसलिए समाज में महिलाओं की स्थिति में सुधार लाने हेतु तथा देश के युवाओं को गलत कदम उठाने से बचाने के लिए बहुविवाह को कानूनी रुप से अवैध घोषित करने का प्रयास करना होगा।

निष्कर्ष(Conclusion)

भारतीय समाज में बहु विवाह(Polygamy in India) प्राचीन काल से अस्तित्व में है। एवं वर्तमान समय में गैर कानूनी घोषित होने के बावजूद भी प्रचलित है। बहुविवाह मुख्य रूप से महिलाओं की स्थितियों का दमन करता है। क्योंकि समाज में बहुपतित्व का प्रचलन तो समाप्त हो चुका है। परंतु  बहुविवाह का प्रचलन अभी भी जारी है। इसका प्रचलन किसी धर्म या संस्कृत से ना जुड़कर बल्कि अतीत के कुछ कारणों द्वारा उचित ठहराया जाता है। अतः इस प्रथा को पूर्णतया त्याग देना चाहिए। साथ ही साथ मुस्लिम समाज में कानूनी तौर पर परिवर्तन लाकर बहुविवाह की स्थिति से महिलाओं को शोषण से बचाया जा सकता है।

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