राजपूत विवाह परंपराएँ

राजपूत विवाह परंपराएँ: गर्व, शौर्य और संस्कृति का संगम

भारतीय समाज में विवाह केवल दो व्यक्तियों का मिलन नहीं है, बल्कि दो परिवारों और उनकी परंपराओं का मिलन होता है। राजपूत समुदाय में विवाह को अत्यंत महत्वपूर्ण और पवित्र माना जाता है। राजपूत विवाह परंपराओं में गर्व, शौर्य, संस्कृति और धर्म का विशेष स्थान है। ये परंपराएँ सदियों पुरानी हैं और इन्हें बड़े ही श्रद्धा और सम्मान के साथ निभाया जाता है। इस लेख में हम राजपूत विवाह परंपराओं के विभिन्न पहलुओं पर विस्तृत चर्चा करेंगे।

विवाह पूर्व की परंपराएँ

विवाह प्रस्ताव

राजपूत समाज में विवाह प्रस्ताव का प्रारंभिक चरण महत्वपूर्ण होता है। पारंपरिक रूप से, परिवार के बुजुर्ग और रिश्तेदार इस प्रक्रिया में प्रमुख भूमिका निभाते हैं।

आजकल, मैट्रिमोनियल वेबसाइट्स और सोशल मीडिया का भी उपयोग हो रहा है।

कुंडली मिलान

कुंडली मिलान राजपूत विवाह परंपराओं का एक प्रमुख अंग है।

वर और वधू की कुंडलियों का मिलान किया जाता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि दोनों के ग्रह-नक्षत्र अनुकूल हैं और उनका वैवाहिक जीवन सुखमय रहेगा। इसमें 36 गुणों का मिलान किया जाता है और कम से कम 18 गुण मिलना आवश्यक होता है।

रोका

कुंडली मिलान के बाद “रोका” या सगाई की रस्म होती है।

यह एक प्रकार की घोषणा है कि दोनों परिवारों ने विवाह के लिए अपनी स्वीकृति दे दी है।

इस अवसर पर दोनों परिवार एक दूसरे को उपहार और मिठाइयाँ देते हैं और वधू को अंगूठी पहनाई जाती है।

राजपूत विवाह समारोह

गणपति पूजा

विवाह समारोह की शुरुआत गणपति पूजा से होती है।

गणेश भगवान को विघ्नहर्ता माना जाता है, इसलिए विवाह के सभी कार्य निर्विघ्न संपन्न हो इसके लिए सबसे पहले उनकी पूजा की जाती है।

मेहंदी और संगीत

मेहंदी की रस्म विवाह से एक या दो दिन पहले होती है।

इसमें वधू के हाथों और पैरों पर मेहंदी लगाई जाती है।

यह रस्म बहुत ही हर्षोल्लास और मस्ती के साथ मनाई जाती है। इसके साथ ही संगीत की रात होती है, जिसमें परिवार के सदस्य और मित्रगण नृत्य और संगीत का आनंद लेते हैं।

वरमाला

गणपति पूजा के बाद वरमाला की रस्म होती है। वर और वधू एक दूसरे को माला पहनाते हैं, जो उनके एक दूसरे के प्रति प्रेम और सम्मान का प्रतीक होता है।

यह रस्म विवाह के आरंभ की घोषणा करती है।

मंडप और हवन

विवाह का मुख्य आयोजन मंडप में होता है।

मंडप को विशेष रूप से सजाया जाता है और इसके केंद्र में हवन कुंड होता है। अग्नि को साक्षी मानकर वर और वधू विवाह के मंत्रों का उच्चारण करते हैं और सात फेरों के साथ एक दूसरे को जीवन भर साथ निभाने का वचन देते हैं।

कन्यादान

कन्यादान राजपूत विवाह का एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है।

इसमें वधू के माता-पिता अपनी पुत्री का हाथ वर के हाथ में सौंपते हैं और उसे अपनी बेटी का संरक्षण और देखभाल सौंपते हैं। यह रस्म माता-पिता के बलिदान और प्रेम का प्रतीक है।

सप्तपदी

सप्तपदी का अर्थ है ‘सात कदम’, जिसमें वर और वधू अग्नि के चारों ओर सात कदम चलते हैं और प्रत्येक कदम के साथ एक व्रत लेते हैं।

ये सात व्रत उनके वैवाहिक जीवन के सात प्रमुख सिद्धांतों को दर्शाते हैं।

विवाह के बाद की परंपराएँ

गृह प्रवेश

विवाह के बाद वधू अपने ससुराल में प्रवेश करती है, जिसे “गृह प्रवेश” कहा जाता है।

इस अवसर पर वधू अपने दाहिने पैर से घर के अंदर प्रवेश करती है, जो शुभ माना जाता है।

इस दौरान उसकी आरती उतारी जाती है और उसके स्वागत में कई रस्में निभाई जाती हैं।

मुह दिखाई

गृह प्रवेश के बाद “मुह दिखाई” की रस्म होती है।

इसमें ससुराल के सदस्य वधू को उपहार और आशीर्वाद देते हैं। यह रस्म वधू को परिवार का सदस्य स्वीकार करने और उसे सम्मान देने का प्रतीक है।

पग फेरा

विवाह के बाद वधू अपने मायके वापस जाती है जिसे “पग फेरा” कहा जाता है।

यह रस्म उसके ससुराल में आने के बाद कुछ दिनों में संपन्न होती है।

मायके में उसका स्वागत बड़े ही धूमधाम से किया जाता है और उसे उपहार दिए जाते हैं।

राजपूत विवाह परंपराओं में आधुनिकता और परिवर्तन

वर्तमान समय में राजपूत विवाह परंपराओं में भी कुछ परिवर्तन और आधुनिकता का समावेश देखा जा सकता है।

अब विवाह समारोह अधिक संक्षिप्त और सरल होते जा रहे हैं। वर-वधू की पसंद और सहमति को भी अधिक महत्व दिया जा रहा है।

इसके अलावा, विवाह के आयोजन में आधुनिक तकनीकों और सुविधाओं का उपयोग भी बढ़ा है।

निष्कर्ष

राजपूत विवाह परंपराएँ भारतीय संस्कृति और परंपरा का जीवंत उदाहरण हैं।

ये परंपराएँ न केवल धार्मिक और सामाजिक महत्व रखती हैं, बल्कि एक मजबूत परिवारिक बंधन को भी स्थापित करती हैं। यद्यपि आधुनिकता और समय के साथ इनमें कुछ परिवर्तन आए हैं, फिर भी इनकी मूल भावना और महत्व आज भी बरकरार है। राजपूत विवाह परंपराएँ अपने अनुशासन, श्रद्धा और समर्पण के साथ आज भी समाज में एक महत्वपूर्ण स्थान बनाए हुए हैं।

इन परंपराओं के माध्यम से राजपूत समाज अपने गौरवशाली इतिहास और संस्कृति को संरक्षित और सम्मानित करता है।


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